सनातन धर्म के अनुसार सर्वप्रथम क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन क रते हुए विष्णुजी प्रकट हुये — उदाप्लुतं विश्वमिदं तदाऽऽसीद् यन्निद्रयामीलितदृङ् न्यमीलयत् ï । अहीन्द्रतल्पेऽधिशयान ए क : कृ तक्षण : स्वात्मरतौ निरीह : ॥ ( श्रीमद्भागवत महापुराण , स्कन्ध ३ , श्लो क १० ) सृष्टि के पूर्व सम्पूर्ण विश्व जल में डूबा हुआ था। उस समय एक मात्र श्रीनारायणदेव शेषशय्यापर पौढ़ै हुए थे। वे अपनी ज्ञान शक्ति को अक्षुण्ण रखते हुए ही , योग निद्रा का आश्रय ले अपने नेत्र मूँदे हुए थे। सृष्टि क र्म से अव का श ले क र आत्मानन्द में मग्न थे। उनमें कि सी भी क्रिया का उन्मेष नहीं था॥